मंज़िल का मोहब्बत मैं कहीं नाम नहीं है आग़ाज़ ही आग़ाज़ है अंजाम नहीं है सय्याद ये क्यूँ-कर कहूँ आराम नहीं है जो कल थी तड़प आज तह-ए-दाम नहीं है नज़्ज़ारे से हाँ और भी दिल होता है बेचैन बे आप के देखे भी तो आराम नहीं है आराम सुकूँ में है सुकूँ मौत में या'नी जीने में तो ज़ाहिर है कि आराम नहीं है है शाम तो अब सुब्ह का होना है क़यामत जब सुब्ह हुई तो ख़बर-ए-शाम नहीं है ये दर्द ये सोज़िश ये तड़प और ये आहें किस मुँह से कहूँ इश्क़ में आराम नहीं है हो दिल में मोहब्बत तो हो एहसास-ए-मोहब्बत फ़ितरत का ये इनआ'म मगर आम नहीं है ज़ुल्फ़ें रुख़-ए-पुर-नूर पे कहती हैं बिखर के इस शाम के बा'द और कोई शाम नहीं है 'रौशन' ये मोहब्बत की है दुनिया ही निराली मिट जाना यहाँ कोई बड़ा काम नहीं है