बुझा बुझा सा चराग़-ए-सर-ए-मज़ार हूँ में ख़िज़ाँ ने जिस को सँवारा है वो बहार हूँ मैं वो जिस पे ग़ैर भी रोते हैं आठ आठ आँसू वो एक महफ़िल-ए-माज़ी की यादगार हूँ मैं जो तेरे दामन-ए-रहमत की आबरू रख ले मिरे करीम वही इक गुनाहगार हूँ मैं निगाह हो तो ज़रा देख आलम-ए-तख़रीब अजल की गोद में क़ुदरत का शाहकार हूँ मैं हँसा हँसा के रुलाया गया हूँ सारी उम्र सितम-ज़रीफ़ी-ए-फ़ितरत का शाहकार हूँ मैं न पूछ आह-ए-मोहब्बत की ज़िंदगी 'रौशन' ख़िज़ाँ की शक्ल में पर्वर्दा-ए-बहार हूँ मैं