मंज़िल से पहले ही चलना छोड़ दिया मुझ को उस ने राह में तन्हा छोड़ दिया फेंक दी उस ने हाथ से जब तलवार तो फिर मैं ने भी दुश्मन को ज़िंदा छोड़ दिया मुरझाए मुरझाए से हैं शाख़ों पर फूलों ने क्यों जाने खिलना छोड़ दिया दौर-ए-तरक़्क़ी तेरे सदक़े छोटों ने अपने बड़ों की इज़्ज़त करना छोड़ दिया उस दीपक को कौन बुझाने वाला है जिस दीपक को मैं ने जलता छोड़ दिया तब से ही तो सूख गया है वो दरिया जब से तुम ने इस में नहाना छोड़ दिया गर्दिश ही तो साथ हमारे रहती थी गर्दिश ने भी साथ हमारा छोड़ दिया इक मा'मूली पिनहारन की चाहत में शहज़ादे ने शहर-ए-बुख़ारा छोड़ दिया 'आलम' जब से उस ने नज़रें फेरी हैं आँखों ने भी ख़्वाब सजाना छोड़ दिया