मंज़िल-ए-बे-जहत की ख़ैर सई-ए-सफ़र है राएगाँ अहल-ए-वफ़ा के क़ाफ़िले फिर भी तो हैं रवाँ दवाँ ज़हर है मेरे जाम में होंटों पे आ गई है जाँ फिर भी मुझे हयात पर तेरे करम का है गुमाँ दहर पे मैं खुला नहीं मुझ को ख़ुदा मिला नहीं आप ही अपना राज़ हूँ आप ही अपना राज़-दाँ हुस्न को छू के देखना आग था मोम के लिए रूह पिघल के रह गई अक़्ल हुई धुआँ धुआँ वो भी तो हैं कि ज़िंदगी जिन के लिए है अंग्बीं ज़ाइक़ा-ए-हयात से ऐँठ गई मिरी ज़बाँ गोश-ए-गुल-बहार में किस ने कहा है हर्फ़-ए-शौक़ कौन है मेरा तर्जुमाँ किस को मिली मिरी ज़बाँ