मंज़िलें भी ये शिकस्ता-बाल-ओ पर भी देखना तुम सफ़र भी देखना रख़्त-ए-सफ़र भी देखना हाल-ए-दिल तो खुल चुका इस शहर में हर शख़्स पर हाँ मगर इस शहर में इक बे-ख़बर भी देखना रास्ता दें ये सुलगती बस्तियाँ तो एक दिन क़र्या-ए-जाँ में उतरना ये नगर भी देखना चंद लम्हों की शनासाई मगर अब उम्र भर तुम शरर भी देखना रक़्स-ए-शरर भी देखना जिस की ख़ातिर मैं भुला बैठा था अपने आप को अब उसी के भूल जाने का हुनर भी देखना ये तो आदाब-ए-मोहब्बत के मुनाफ़ी है 'अता' रौज़न-ए-दीवार से बैरून-ए-दर भी देखना