मंज़िलें एक सी आवारगीयाँ एक सी हैं मुख़्तलिफ़ हो के भी सब ज़िंदगियाँ एक सी हैं कोई क़ासिद हो कि नासेह कोई आशिक़ कि अदू सब की उस शोख़ से वाबस्तगियाँ एक सी हैं दश्त-ए-मजनूँ न सही तेशा-ए-फ़रहाद सही सफ़र-ए-इश्क़ में वामांदगियाँ एक सी हैं ये अलग बात कि एहसास जुदा हों वर्ना राहतें एक सी अफ़सुर्दगियाँ एक सी हैं सूफ़ी ओ रिंद के मस्लक में सही लाख तज़ाद मस्तियाँ एक सी वारफ़्तगियाँ एक सी हैं वस्ल हो हिज्र हो क़ुर्बत हो कि दूरी हो 'फ़राज़' सारी कैफ़िय्यतें सब तिश्नगियाँ एक सी हैं