उन्हीं लोगों की बदौलत ये हसीं अच्छे हैं चाहने वाले इन अच्छों से कहीं अच्छे हैं कूचा-ए-यार से यारब न उठाना हम को इस बुरे हाल में भी हम तो यहीं अच्छे हैं न कोई दाग़ न धब्बा न हरारत न तपिश चाँद-सूरज से भी ये माह-जबीं अच्छे हैं कोई अच्छा नज़र आ जाए तो इक बात भी है यूँ तो पर्दे में सभी पर्दा-नशीं अच्छे हैं तेरे घर आएँ तो ईमान को किस पर छोड़ें हम तो का'बे ही में ऐ दुश्मन-ए-दीं अच्छे हैं हैं मज़े हुस्न-ओ-मोहब्बत के इन्हीं को हासिल आसमाँ वालों से ये अहल-ए-ज़मीं अच्छे हैं एक हम हैं कि जहाँ जाएँ बुरे कहलाएँ एक वो वो हैं कि जहाँ जाएँ वहीं अच्छे हैं कूचा-ए-यार से महशर में बुलाता है ख़ुदा कह दो 'मुज़्तर' कि न आएँगे यहीं अच्छे हैं