मन-मौजी है एक डगर में रहता है दिल का दरिया रोज़ सफ़र में रहता है एक पतंग उड़ती है मेरी सोच में रोज़ डोर लिए वो पस-मंज़र में रहता है कौन लकीरें खींच रहा है आँगन में कौन है जो इस ख़ाली घर में रहता है रोज़ मैं इन गलियों की ख़ैर मनाती हूँ रोज़ इक शो'ला-ख़ेज़ ख़बर में रहता है कब तक मैं घर के दरवाज़े बंद करूँ ख़ौफ़ ये कैसा बाम-ओ-दर में रहता है चुनते थे शहतूत कभी उन रस्तों में अब पीपल का पेड़ नज़र में रहता है