थकन से चूर हैं और गर्द से अटे हैं हम नज़र उठा कि तिरी सम्त देखते हैं हम वही चराग़ वही मैं वही फ़ुसूँ तेरा हर एक बार यूँही तुझ को चाहते हैं हम तिरे ख़याल की ख़ुश्बू उदास करती है तिरे सराब की वादी में गूँजते हैं हम ये और बात तिरे साथ दिन गुज़रता है ये और बात तिरी नींद में रहे हैं हम कभी कभी तो यूँ रस्ते में शाम होती है कि हौसलों की तरह ख़ुद में टूटते हैं हम