मंज़िल-ए-हयात से बे-ख़तर गुज़र गया आप जल्वा-रेज़ थे मैं जिधर जिधर गया हादसात-ए-दहर से मस्त-ओ-बे-ख़बर गया जुस्तुजू-ए-शौक़ में दिल निखर निखर गया जुरअत-ए-रवानी-ए-राहबर न पूछिए मंज़िलों को छोड़ता कारवाँ गुज़र गया जाग उठा तो ज़िंदगी सो गया तो मौत है इतना जान ले तो फिर आदमी सँवर गया रहनुमा के भेस में राहज़न हैं आज-कल ए'तिमाद-ए-राहबर दिल से अब उतर गया तुम मिले तो मिट गईं कुल्फ़तें फ़िराक़ की फ़िक्र-ए-आह-ए-शब गई नाला-ए-सहर गया हम-नवाओ दोस्तो फ़िक्र आज की करो कल का तज़्किरा ही क्या जो हुआ गुज़र गया 'दर्द' उस निगाह पर जान भी निसार है जिस के इल्तिफ़ात पर दिल गया जिगर गया