लोग पी जाएँ जहाँ दीदा-ए-तर की बातें कौन सुनता है वहाँ ज़ख़्म-ए-जिगर की बातें इस क़दर आम हुईं अहल-ए-नज़र की बातें दास्ताँ बन के रहीं अपने ही घर की बातें कब से गर्दिश में है ज़र्रात-ए-ज़मीं की तक़दीर आप करते हैं सितारों के सफ़र की बातें क्या क़यामत है कि इस बाग़-ए-जहाँ में हम ने ग़ुंचा-ओ-गुल से सुनीं बर्क़-ओ-शरर की बातें बज़्म-ए-हस्ती है कि ये शहर-ए-ख़मोशाँ यारो गुल ख़िलातीं ही नहीं अहल-ए-हुनर की बातें 'दर्द' मालूम है अंजाम-ए-शब-ए-ग़म लेकिन दिल के बहलाने को करते हैं सहर की बातें