मंज़ूर नहीं रंज को राहत मिरे दिल की फ़ुर्क़त को गवारा नहीं फ़ुर्क़त मिरे दिल की क्या पूछते हो चारागरो दर्द-ओ-अलम को सूरत से अयाँ होती है हालत मिरे दिल की हर-वक़्त मुसीबत में है हर-वक़्त बला में क्या दर्द-ओ-अलम से हुई ख़िल्क़त मिरे दिल की बावर नहीं आता है तो ऐ जान तुम आ कर ख़ुद देख लो हालत शब-ए-फ़ुर्क़त मिरे दिल की वा'दा तो किया है शब-ए-फ़ुर्क़त में अजल ने शायद कि ठिकाने लगी मेहनत मिरे दिल की वो ग़ैर की उल्फ़त से अगर बाज़ भी आएँ जाएगी न ता-ज़ीस्त कुदूरत मिरे दिल की क्या लुत्फ़ मिला हिज्र का उस को भी कहीं 'लुत्फ' क्यों ग़ैर को मंज़ूर है राहत मिरे दिल की