क्या कहूँ इश्क़ में क्या क्या न हुआ क्या होगा आज ज़िंदा हूँ तो क्या कल मुझे मरना होगा मुझ को आदत के लिए चाहिए दुनिया में जहीम आतिशीं-रुख़ के मुक़ाबिल मुझे रहना होगा ख़्वाहिश-ए-महफ़िल-ए-जानाँ दिल-ए-नादाँ है अबस कि यक़ीं है कि वहाँ मजमा-ए-आदा होगा राज़-ए-उल्फ़त न छुपाएगा ये छुपना तेरा पर्दा-दर ख़ुद यही इक दिन तिरा पर्दा होगा बेवफ़ा 'लुत्फ' सही ग़ैर वफ़ादार बजा इस से इंकार किसे है बहुत अच्छा होगा