मक़्तल से अपनी लाश लिए हम जो चल पड़े सुनते हैं क़ातिलों के भी माथे पे बल पड़े आहें चमक रही थीं फ़लक पर ज़मीन की दुनिया समझ रही थी सितारे निकल पड़े जब तीरगी की चीख़ पड़ी उन के कान में मुर्दा पड़े चराग़ भी यक-लख़्त जल पड़े साहिल पे ज्यूँ ही पाँव रखा रेग-ज़ार ने पानी में जितने दफ़्न थे दरिया उछल पड़े आँखें रगड़ रहा हूँ ज़मीं पर मैं मुस्तक़िल आँखों में धूल झोंकने वालों को कल पड़े 'शहबाज़' एक शे'र हुआ था किसी के नाम जितने भी अहल-ए-दर्द थे सुन कर उछल पड़े