मिस्ल-ए-दौलत जो मिरे बाद रखी जाएगी किस तिजोरी में तिरी याद रखी जाएगी ग़म का सूरज चला आया है सवा नेज़े पर क्या किसी हश्र की बुनियाद रखी जाएगी पहले तो तोड़ दी जाएगी कमर तेरी यहाँ फिर तिरे हाथ में इमदाद रखी जाएगी रौंद दी तेरे तग़ाफ़ुल ने जो दिल की दुनिया तिरी बेदाद से आबाद रखी जाएगी लिख तो डाली गई तलवार से लेकिन 'शहबाज़' कैसे महफ़ूज़ ये रूदाद रखी जाएगी