मर ही जाए मबादा अजल ना-समझ आइने से निकल ज़िंदगी के मसाइल का हल वक़्त के साथ ख़ुद को बदल तेरी मंज़िल अभी दूर है ऐ मुसाफ़िर ज़रा तेज़ चल याद आई भी उस की तो कब मुर्तइश हाथ हैं पाँव शल ठोकरें तो हैं मंज़िल-रसाँ ख़ौफ़ से रास्ते मत बदल आज फिर तू उठा देर से तोस खा चाय पी हाथ मल तेरी यादों की यलग़ार है जीना दुश्वार है आज-कल क्या अदावत में पास-ए-अदब क्या मोहब्बत में मौक़ा महल चश्म-ए-नम दिल की ग़म्माज़ है मुस्कुरा कर न लहजा बदल शाम होने को है मुंजमिद मुतरिबा छेड़ कोई ग़ज़ल