मार कर तीर जो वो दिलबर-ए-जानी माँगे कह दो हम से न कोई दे के निशानी माँगे ऐ सनम देख के हर दम की तिरी कम-सुख़नी मौत घबरा के न क्यूँ ये ख़फ़क़ानी माँगे ख़ाक से तिश्ना-ए-दीदार के सब्ज़ा जो उठे तो ज़बाँ अपनी निकाले हुए पानी माँगे मार-ए-पेचाँ तो बला हैगा मगर तू ऐ ज़ुल्फ़ है वो काफ़िर कि न काटा तिरा पानी माँगे दहन-ए-यार हो और माँगे किसी से दिल को वो जो माँगे तो ब-अंदाज़-ए-निहानी माँगे दिल मिरा बोसा-ब-पैग़ाम नहीं है हमदम यार लेता है तो ले अपनी ज़बानी माँगे जल्वा उस आलम-ए-मअ'नी का जो देखे ऐ 'ज़ौक़' लुत्फ़-ए-अल्फ़ाज़ न बे-हुस्न-ए-मआनी माँगे