मारा इस शर्त पे अब मुझ को दोबारा जाए नोक-ए-नेज़ा से मिरा सर न उतारा जाए शाम से पहले किसी हिज्र में मर जाएगा सूरज इक बार मिरे दिल से गुज़ारा जाए उस की ये ज़िद कि मिरा क़त्ल पस-ए-पर्दा हो मिरी ख़्वाहिश मुझे बाज़ार में मारा जाए उस के आने की भी उम्मीद अबस लगती है उस को जाना है तो फिर सारे का सारा जाए मैं ज़मीं-ज़ाद हूँ ऐ चाँद-नगर के बासी इस बुलंदी से न फिर मुझ को पुकारा जाए मैं बहर-शक्ल तिरे दिल में उतरना चाहूँ ठहरे दरिया तो समुंदर में किनारा जाए