मर्ग-ए-आशिक़ पर जो बरहम हो दो-आलम का वरक़ हैफ़ है ऐ जाँ तुझे मलना कफ़-ए-अफ़सोस का वस्ल में दुश्वार निकलेगा हमारे दिल से ग़म छोड़ना आसाँ नहीं है ख़ाना-ए-फ़ानूस का क्या लिखे देखे सितमगर मा'नी-ए-लफ़्ज-ए-वफ़ा फाड़ डाला क्यों ख़फ़ा हो कर वरक़ क़ामूस का सामने आँखों के लहराता है मेरा दूद-ए-दिल क्यों तुझे बावर नहीं मुनकिर न हो महसूस का दम-ब-दम आता है अख़बार-ए-दरोग़-ओ-रास्त सब बद-गुमानी नाम है उश्शाक़ के जासूस का किस शिकार-अफ़्गन की आती है सवारी दश्त में मुंतज़िर एक एक वहशी है सदा-ए-कूस का रू-ब-रू-ए-हक़ न इख़्फ़ा-ए-मोहब्बत हो सका सुब्ह-ए-महशर से मगर पर्दा मिरे नामूस का सैर करता हूँ नगीन-ए-दिल 'शहीदी' ज़हर से कंदा इस पर मैं करूँगा नाम शाह-ए-तूस का