मोहब्बत क़त्अ की तुम ने वो कोसों उड़ गया तुम से दिल अपना रिश्ता-ए-उल्फ़त का था ऐ गुल-रुख़ाँ बाँधा अभी जौहर करूँगा अपना वर्ना सच बता मुझ को तिरी तेग़-ए-निगह ने मशवरा क्या मेरी जाँ बाँधा ग़रीक़-ए-बहर-ए-हुश्यारी को हर-दम फ़िक्र-ए-सामाँ हो कभी याँ कश्ती-ए-मय पर न हम ने बादबाँ बाँधा अदावत नीम-जाँ मजनूँ से क्या है तुझ को ऐ ज़ालिम मुग़ीलाँ में जो ख़ाली नाक़ा ला कर सारियाँ बाँधा किया हिज्राँ की शब में कोह-ए-ग़म ने मुझ को चूर ऐसा कि जर्राहों ने सुब्ह आ कर मिरा हर उस्तुख़्वाँ बाँधा बना था पंजा-ए-जर्राह रश्क-ए-पंजा-ए-मरजाँ तिरे ज़ख़्मी का जिस दम उस ने ज़ख़्म-ए-ख़ूँ-चकाँ बाँधा मिरा हर मिस्रा-ए-दीवाँ है इक शाख़-ए-शकर गोया लब-ए-शीरीं का मज़मूँ मैं ने ऐ शीरीं-ज़बाँ बाँधा ज़मान-ए-नज़्अ' देखा इक नज़र हूर-ए-बहिश्ती को ये बोहतान अपने आशिक़ पर अबस ऐ बद-गुमाँ बाँधा कोई ऐ हामिलान-ए-अर्श तुम से दाद लेता हूँ सुतून इक अब मिरे नालों ने सू-ए-ला-मकाँ बाँधा शहीद इस क़द्रदानी का हूँ टुकड़े कर के आशिक़ को लहद पर नख़्ल-ए-मातम यार ने बहर-ए-निशाँ बाँधा मुझे इक उम्र से था मोतियों के सेहरे का अरमान शब-ए-फ़ुर्क़त में तू ने दीदा-ए-गौहर-फ़िशाँ बाँधा रसाई एक तेरे बाम तक उस को नहीं ज़ालिम कमंद-ए-आह में सौ बार मैं ने आसमाँ बाँधा वो गंज-ए-ज़ात क्या कुछ होगा यारब मैं तो हैराँ हूँ हिफ़ाज़त के लिए जिस पर तिलिस्म-ए-दो-जहाँ बाँधा 'शहीदी' कसरत-ए-इस्याँ से मुझ को ख़ौफ़ आता है सफ़र है दूर का और दोष पर बार-ए-गराँ बाँधा