मरहले सख़्त इम्तिहान के हैं चल पड़े हम भी सीना तान के हैं आसमाँ ज़ेर-ए-पर हैं जो ताइर मेरी ही सतह की उड़ान के हैं मुश्तइल रहने दें इन्हें कि बुझाएँ ये चराग़ अपने ही मकान के हैं कौन कहता है शब को शब न कहो कुछ क़रीने भी तो ज़बान के हैं आदमी अब कहाँ ज़मीं पे रहे सब फ़रिश्ते ही आसमान के हैं जिन के शब-ख़ूँ से है दुखी ये ज़मीं जाने वो लोग किस जहान के हैं ज़द पे हम हैं तो ज़द पे तुम भी हो तीर हम भी कड़ी कमान के हैं