हंगाम-ए-नज़्अ' गिर्या यहाँ बे-कसी का था तुम हँस पड़े ये कौन सा मौक़ा हँसी का था उट्ठा न मेरी गोर से दुश्मन भी बैठ कर क्या आलम आज हाए मिरी बेकसी का था छाया है आसमाँ की तरह क़ब्र-ए-ग़ैर पर दिल में मिरे ग़ुबार भरा जो कभी का था दिल ने मुझे ख़राब किया कू-ए-यार में दुश्मन पर ए'तिबार मुझे दोस्ती का था सहरा में फिर रहे थे सुलैमाँ बने हुए जिस को जुनून कहते हैं साया परी का था दिख जाएगा दिल इस लिए जारी हुए न अश्क देखो तो पास नज़्अ' में कितना किसी का था ये अपनी वज़्अ और ये दुश्नाम से फ़रोश सुन कर जो पी गए ये मज़ा मुफ़्लिसी का था जिस अंजुमन में बैठ गया रौनक़ आ गई कुछ आदमी 'रियाज़' अजब दिल-लगी का था