मा'रिफ़त के लिए आगही के लिए नूर-ए-हक़ चाहिए रौशनी के लिए जी रहे हैं किसी की ख़ुशी के लिए वर्ना क्या है यहाँ ज़िंदगी के लिए आप अपना तआ'रुफ़ सर-ए-अंजुमन कितना मुश्किल है इक अजनबी के लिए दश्त-ए-ग़ुर्बत में कुछ और मुमकिन नहीं जुगनूओं के सिवा रौशनी के लिए रख दिए आबशारों ने दिल खोल कर दश्त में एक प्यासी नदी के लिए वक़्त के आगे उस ने भी रख दी सिपर जो था मशहूर अपनी ख़ुदी के लिए 'रहबर' ए'ज़ाज़ ओहदा क़यादत अना मसअला बन गए आदमी के लिए