ख़्वाहिशों को गले का हार न कर मौत से ख़ुद को हम-कनार न कर मुझ से सरज़द हुआ है जुर्म-ए-अना दार पर खींच संगसार न कर जो भी करना है कर गुज़र इक बार तू मुझे क़त्ल क़िस्त-वार न कर दुश्मनी में भी रख कुछ अपनी शान वार कर लेकिन ओछे वार न कर तू जिसे ज़िंदगी समझता है ख़्वाब है ख़्वाब ए'तिबार न कर नई राहें तलाश ऐ 'रहबर' रविश-ए-आम इख़्तियार न कर