मरकज़ में था सो ध्यान में रक्खा गया मुझे हर वक़्त इम्तिहान में रक्खा गया मुझे इस के सिवा नहीं है मसीहा मिरा कोई इक उम्र इस गुमान में रक्खा गया मुझे अतराफ़ मेरे खींचा गया ख़ौफ़ का हिसार डहते हुए मकान में रक्खा गया मुझे मेरी ज़बाँ से क़ुव्वत-ए-गोयाई छीन कर गूँगों की दास्तान में रक्खा गया मुझे जौहर-शनास नज़रों से ओझल नहीं था मैं क्यूँ कोएले की कान में रक्खा गया मुझे पहरे बिठा दिए गए हर बात पर मिरी दाँतों तले ज़बान में रक्खा गया मुझे अच्छा मज़ाक़ है ये मिरी सादगी के साथ फैशन-ज़दा दुकान में रक्खा गया मुझे करना ही था सिपुर्द जो क़ातिल को एक दिन इस दर्जा क्यों अमान में रक्खा गया मुझे चारों तरफ़ से मुझ पे ज़मीं तंग की गई कहने को आसमान में रक्खा गया मुझे तलवार का सवाल यही जंग-जू से था क्यूँ आज तक मियान में रक्खा गया मुझे हरकत पे है जुमूद तो इज़हार पर सुकूत 'नायाब' किस जहान में रक्खा गया मुझे