मरना मरीज़-ए-इश्क़ के हक़ में शिफ़ा हुआ अच्छा हुआ नजात मिली क्या बुरा हुआ राह-ए-अदम की मंज़िल-ए-अव्वल में क्या हुआ जो आया ख़ाक डाल के मुझ पर हवा हुआ नश्तर को डूबने न दिया ऐ रग-ए-जुनूँ क्या उस का एक क़तरा-ए-ख़ूँ में भला हुआ जिस दिल के दाग़ से हमें थी चश्म-ए-रौशनी रहता है वो तो शाम ही से ख़ुद बुझा हुआ बस ऐसी चारासाज़ी से ऐ 'शौक़' बाज़ आए जिस से कि दर्द और भी दिल में सिवा हुआ