मरने की पुख़्ता-ख़याली में जीने की ख़ामी रहने दो ये इस्तिदलाली तर्क करो बस इस्तिफ़हामी रहने दो ये तेज़-रवी ये तुर्श-रुई चलने की नहीं है दूर तलक शबनम-नज़री शीरीं-सुख़नी आसूदा-गामी रहने दो सौ दश्त समुंदर छानो पर आते रहो क़र्या-ए-दिल तक भी बैरूनी हवा के झोंकों में इक मौज-ए-मक़ामी रहने दो अब तंज़ पे क्यूँ मजबूर करो हम ग़ैर मुलव्विस लोगों को फ़न पेश करो ये फ़हरिस्त-ए-असमा-ए-गिरामी रहने दो रफ़्तार पर इतनी दाद न दो मंज़िल न मिरी छीनो मुझ से अज़-राह-ए-हुनर मिरे हिस्से की थोड़ी नाकामी रहने दो जतलाते फिरो गर क़द अपना पैमाइश की मोहलत तो न दो इस क़ामत-ए-बाला के सदक़े ये ज़ूद-क़यामी रहने दो अब हम से परेशाँ-हालाँ को क्या अम्न-ओ-सुकूँ रास आएगा यूँही बोहरानी चलने दो सारा हंगामी रहने दो ऐ 'साज़' वगर्ना लोग तुम्हें ठहराएँगे साँपों का मस्कन इस शहर-ए-अक्स-गज़ीदा में आईना-फ़ामी रहने दो