मरने की तमन्ना है न जीने की हवस है गुलशन में नशेमन है न सहरा में क़फ़स है भटके हुए राही के क़दम लेती है मंज़िल इस राह में पैग़ाम-ए-सुकूँ बाँग-ए-जरस है देखो तो ज़रा दा'वा-ए-अर्बाब-ए-मोहब्बत हर रंग में पिन्हाँ कोई उन्वान-ए-हवस है गुलज़ार-ए-मोहब्बत है कि बुस्तान-ए-हक़ीक़त बुलबुल है शरर-बार तो गुल शो'ला-नफ़स है अश्कों से नहीं दीदा-ए-ग़मनाक को मतलब आँखों में मिरी नर्गिस-ए-बीमार का रस है खोए हुए राही हैं तो भटके हुए रहबर इस दौर में 'ज़मज़म' जो न हो जाए वह बस है