मंज़र-ए-सुब्ह-ए-बहाराँ नहीं देखा जाता चाक-दामान-ए-गुलिस्ताँ नहीं देखा जाता अल-मदद जोश-ए-जुनूँ जज़्बा-ए-वहशत फ़रियाद मुझ से अब ख़्वाब-ए-परेशाँ नहीं देखा जाता नग़्मा-संजान-ए-चमन मोहर-ब-लब आज भी हैं ये समाँ वक़्त-ए-बहाराँ नहीं देखा जाता बाग़बाँ मैं नहीं कहता कि है काँटों का क़ुसूर तुझ से हर गुल का गरेबाँ नहीं देखा जाता हर नज़र यास में डूबी नहीं देखी जाती हर-नफ़स शो'ला-ब-दामाँ नहीं देखा जाता देख सकता तो हूँ बदले हुए हालात मगर हाल-ए-बर्बादी-ए-इंसाँ नहीं देखा जाता