मर्तबे हुस्न के कम हों ये ज़रूरी तो नहीं आप की बज़्म में हम हों ये ज़रूरी तो नहीं वो तो मक़्सूम ही कुछ और हुआ करते हैं सब की तक़दीर में ग़म हों ये ज़रूरी तो नहीं यूँ भी दीवाने सर-ए-राह भटक सकते हैं आप की ज़ुल्फ़ में ख़म हों ये ज़रूरी तो नहीं आश्ना मुफ़लिस-ओ-नादार की मजबूरी से ज़ेहन-ए-अर्बाब-ए-करम हों ये ज़रूरी तो नहीं वो तो कुछ रास्ते मख़्सूस हुआ करते हैं हर जगह नक़्श-ए-क़दम हों ये ज़रूरी तो नहीं चश्म-ए-साक़ी करे रह रह के इशारे 'अनवर' और फिर होश में हम हों ये ज़रूरी तो नहीं