मरते नहीं अब इश्क़ में यूँ तो आतिश-ए-फ़ुर्क़त अब भी वही है तौर जुनूँ के बदले लेकिन सोज़-ए-मोहब्बत अब भी वही है उम्र की इस मंज़िल पर भी हम तुझ पर जान निछावर कर दें गो वो गर्मी ख़ूँ में नहीं है दिल में क़यामत अब भी वही है तुम क्या जानो जीना मरना हम ने किन शर्तों पर सीखा आज भी ऐसे लोग हैं जिन में शौक़-ए-शहादत अब भी वही है कैसे कैसे मरहले गुज़रे जिन में उस ने साथ दिया था भूल गए हम लेकिन उस की हम पे इनायत अब भी वही है कितने कोह-ए-गिराँ काटे हैं कितने सनम तराशे 'आज़र' शौक़-ए-ज़ुहूर की हर पत्थर में रक़्साँ वहशत अब भी वही है