मसर्रतों के एवज़ जो यारों ख़मोशियों के रफ़ीक़ होंगे हमें पता है वही तुम्हारी मोहब्बतों में ग़रीक़ होंगे ऐ हम-सफ़र सुन गई रुतों की मुहीब शब में बिछड़ के मुझ से न सोचा तू ने कि तेरी फ़ुर्क़त के दश्त कितने अमीक़ होंगे जो ज़र्द रुत की हिरासतों में हयात अपनी गुज़ारते हैं वो लोग इक दिन तू देख लेना उदासियों के फ़रीक़ होंगे ख़ुलूस-ओ-चाहत वफ़ा मोहब्बत को देखती हूँ तो सोचती हूँ हर आने वाली सदी में हमदम ये तौर किस के तरीक़ होंगे मैं पास आ कर हबीब तेरे ख़मोश लब से यही कहूँगी जो इज़्ज़तों को बिगाड़ डालें वो लोग कैसे शफ़ीक़ होंगे