मशहूर चमन में तिरी गुल पैरहनी है क़ुर्बां तिरे हर उज़्व पे नाज़ुक-बदनी है उर्यानी-ए-आशुफ़्ता कहाँ जाए पस-अज़-मर्ग कुश्ता है तिरा और यही बे-कफ़नी है समझे है न परवाना न थामे है ज़बाँ शम्अ' वो सोख़्तनी है तो ये गर्दन-ज़दनी है लेता ही निकलता है मिरा लख़्त-ए-जिगर अश्क आँसू नहीं गोया कि ये हीरे की कनी है बुलबुल की कफ़-ए-ख़ाक भी अब होगी परेशाँ जामे का तिरे रंग सितमगर चिमनी है कुछ तो उभर ऐ सूरत-ए-शीरीं कि दिखाऊँ फ़रहाद के ज़िम्मे भी अजब कोह-कनी है हों गर्म-ए-सफ़र शाम-ए-ग़रीबाँ से ख़ुशी हों ऐ सुब्ह-ए-वतन तू तो मुझे बे-वतनी है हर-चंद गदा हूँ मैं तिरे इश्क़ में लेकिन इन बुल-हवसों में कोई मुझ सा भी ग़नी है हर अश्क मिरा है दुर-ए-शहवार से बेहतर हर लख़्त-ए-जिगर रश्क-ए-अक़ीक़-ए-यमनी है बिगड़ी है निपट 'मीर' तपिश और जिगर में शायद कि मिरे जी ही पर अब आन बनी है