तरसा न मुझ को खींच के तलवार मार डाल गर मार डालना है तो यक-बार मार डाल आशिक़ जो तेरी ज़ुल्फ़ का हो उस को तू सनम ले जा के तीरा-शब पस-ए-दीवार मार डाल कुब्क-ए-दरी के लाख क़फ़स हों जहाँ धरे दिखला के उन को शोख़ी-ए-रफ़्तार मार डाल कुछ हम ने तेरे हाथ तो पकड़े नहीं मियाँ गर जानता है हम को गुनहगार मार डाल सय्याद तुझ को किस ने कहा था कि फ़स्ल-ए-गुल मुझ को क़फ़स में कर के गिरफ़्तार मार डाल जो जाँ-ब-लब हो हसरत-ए-दीदार में तिरी दिखला के उस को जल्वा-ए-रुख़सार मार डाल सौदाइयान-ए-इश्क़ का झगड़ा चुका कहीं ले जा के उन को बरसर-ए-बाज़ार मार डाल तेग़ ओ कमंद माँग कर अबरू ओ ज़ुल्फ़ से आशिक़ बहुत हुए हैं जफ़ा-कार मार डाल गर ये भी हो सके न तो कहता है 'मुसहफ़ी' दो चार कर ले क़ैद में दो-चार मार डाल