मस्कन वहीं कहीं है वहीं आशियाँ कहीं दो आड़े सीधे रख लिए तिनके जहाँ कहीं फूलों की सेज फूलों की हैं बद्धियाँ कहीं काँटों पे हम तड़पते हैं ओ आसमाँ कहीं जाते किधर हो तुम सफ़-ए-महशर में ख़ैर है दामन न हो ख़ुदा के लिए धज्जियाँ कहीं पहरा बिठा दिया है ये क़ैद-ए-हयात ने साया भी साथ साथ है जाऊँ जहाँ कहीं बस मुझ को दाद मिल गई मेहनत वसूल है सुन ले ग़ज़ल ये बुलबुल-ए-हिन्दुस्ताँ कहीं 'शाइर' वो आज फिर वहीं जाते हुए मिले दुश्मन के सर पे टूट पड़े आसमाँ कहीं