मस्लक-ए-इश्क़ में जाएज़ है जफ़ा रहने दे मुझ को महबूब की चौखट पे पड़ा रहने दे आलम-ए-नज़'अ में साया हो घनी ज़ुल्फ़ों का अपने चेहरा पे निगाहों को जमा रहने दे हम ने काँटों से निकाला है अदब को ज़ालिम हल्क़ा-ए-ज़ौक़ को फूलों से सजा रहने दे तेरी नज़रों से चला तीर लगा है दिल पर इस बहाने ही सही फूल खिला रहने दे नाम लेना भी है दूभर ये वफ़ा कैसी है शाक़ है दिल पे बहुत ऐसी सज़ा रहने दे मेरे ज़ख़्मों का मुदावा है दुआएँ तेरी कम से कम नाम ही होंटों पे सजा रहने दे तेरी मुस्कान में पिन्हाँ है हमारी हस्ती अपने होंटों पे तबस्सुम को ज़रा रहने दे अक्स आँखों में बसाने की इजाज़त दे दे अपनी यादों का दिया दिल में जला रहने दे दोश-ए-मक्कार उठाए जो जनाज़ा मेरा इस से बेहतर है कि मक़्तल में पड़ा रहने दे मशरब-ए-दीद का शैदाई 'फ़लक' कहता है जाम-ए-उल्फ़त में तमन्ना को मिला रहने दे