मस्ती-ए-बादा-ए-गुलफ़ाम से वाबस्ता रही ज़िंदगी रक़्स-ए-मय-ओ-जाम से वाबस्ता रही लोग कहते हैं कि कुछ उस में मिरा ज़िक्र भी था वो हिकायत जो तिरे नाम से वाबस्ता रही दिल जो घबराया तो मय-ख़ाने में हम जा बैठे हर ख़लिश बादा-ए-गुलफ़ाम से वाबस्ता रही उस की मजबूरी-ए-पैहम पे ज़रा ग़ौर करें जो तमन्ना दिल-ए-नाकाम से वाबस्ता रही 'अर्श' मुद्दत हुई गो तर्क-ए-मय-ओ-जाम किए फिर भी तोहमत ये मिरे नाम से वाबस्ता रही