मस्तों के जो उसूल हैं उन को निभा के पी इक बूँद भी न कल के लिए तू बचा के पी क्यूँ कर रहा है काली घटाओं के इंतिज़ार उन की सियाह-ज़ुल्फ़ पे नज़रें जमा के पी चोरी ख़ुदा से जब नहीं बंदों से किस लिए छुपने में कुछ मज़ा नहीं सब को दिखा के पी 'फ़य्याज़' तू नया है न पी बात मान ले कड़वी बहुत शराब है पानी मिला के पी