हम ने तो जुस्तुजू को भी है मुद्दआ' किया या'नी कि दिल के दर्द को हुस्न-ए-नवा किया हर जुम्बिश-ए-नज़र में निहाँ तेरे इंक़लाब मुझ को घटा दिया कभी मुझ को सिवा किया ऐ काश तेरा हुस्न ही अस्ल-ए-हयात हो तेरी नज़र से हम ने हक़ीक़त को वा किया उस दश्ना-ए-नज़र का भला और क्या जवाब हमदम में दिल के चाक ही बैठा सिया किया उस रहगुज़र से अब वो न गुज़रेगा ऐ नदीम कुछ मैं ने कह दिया था मगर उस ने क्या किया मैं उस से सरख़ुशी में वही बात कह गया कितना बुरा किया अरे कितना बुरा किया क्या क्या जतन किए न मोहब्बत में ऐ नदीम क्या पूछते हो क्या न किया और क्या किया अब बाज़-गश्त की कोई सूरत निकल सके यूँ तो तिरे बग़ैर भी ये दिल जिया किया इक चूमती हुई सी नज़र डाल कर 'मसऊद' तुम ने एक सनम को ख़ुदा किया