मत मेहर सेती हाथ में ले दिल हमारे कूँ जलता है क्यूँ पकड़ता है ज़ालिम अँगारे कूँ चेहरे को छिड़कियाव किया है अंझू नीं यूँ पानी के धारे काटते हैं जूँ करारे कूँ माक़ूल क्यूँ रक़ीब हो मिन्नत सीं ख़ल्क़ की कुइ ख़ूब कर सके है ख़ुदा के बिगाड़े कूँ मरता हूँ लग रही है रमक़ आ दरस दिखाओ जा कर कहो हमारी तरफ़ से पियारे कूँ मैं आ पड़ा हूँ इश्क़ के ज़ालिम भँवर में आज ऐसा कोई नहीं कि लगावे किनारे कूँ सीने को अबरुवाँ नीं तिरे यूँ किया फ़िगार तख़्ते उपर चलावते हैं जूंकि आरे कूँ अपना जमाल 'आबरू' कूँ टुक दिखाओ आज मुद्दत से आरज़ू है दरस की बिचारे कूँ