मोहब्बत सेहर है यारो अगर हासिल हो यक-रूई ये अफ़्सूँ ख़ूब असर करता है लेकिन जबकि जादूई ख़याल-ए-मा-सिवा सीं साफ़ कर तू अपने सीने कूँ कि दिल के रिश्ता-ए-इख़्लास कूँ लाज़िम है यकसूई लिबास-ए-पम्बई बिन क्यूँके गुज़रे मौसम-ए-सर्मा क़यामत है ये तेरी सर्द-मेहरी तिस पे ये सर्दी अँधेरा आ गया आँखों के आगे ख़श्म सूँ मेरी जभी उस छोकरे की बुल-हवस नें ज़ुल्फ़ टुक छूई पसीने सीं तिरे ऐ शोख़ बू आती है दारू की एती ऐ फ़ित्नागर सीखी कहाँ सीं तू नें बद-ख़़ूई मुक़ाबिल दुख़्तर-ए-रज़ की जभी वो मुग़बचा बोला अब उस के देख मारे शौक़ के पानी हो करचूई हुए फिरते हो दुश्मन 'आबरू' के ऐ सजन अब तो कहो उल्फ़त दिली और दोस्ती जानी वो क्या हुई