मातम-ए-रंज-ओ-अलम ग़म हैं बहम चारों एक सितम-ओ-जौर-जफ़ा नाज़-ओ-सनम चारों एक जब अटकता है जो दिल कुछ नहीं छोड़े बाक़ी नंग-ओ-नामूस हया और शरम चारों एक इश्क़-बाज़ाँ के तईं इश्क़ में तेरे ऐ यार मस्जिद-ओ-मदरसा-ओ-दैर-ओ-हरम चारों एक फ़र्क़ हरगिज़ नहीं जो तुझ से मिलावे आँखें तीर और ख़ंजर-ओ-जम्धर के ज़ख़म चारों एक ज़ुल्फ़ जूँ मार-ए-सियह क़द जो दरख़्त-ए-चंदन आज देख आए हैं इस तौर से हम चारों एक यार और आशिक़-ओ-साक़ी-ओ-शराब-ओ-सब्ज़ा देखता है कोई यक जाए पे कम चारों एक भूल जाते हैं सभी बज़्म में मह-रूयों की अक़्ल-ओ-दानिश-ओ-तमीज़ और फ़हम चारों एक हूँ तिरा ऐ सनमा इस वज़्अ' से फ़र्मां-बरदार सारबान-ओ-नफ़र-ओ-बंदा ख़दम चारों एक ग़ैर वसलत के तिरे और न ख़्वाहिश अपनी क्या तला नुक़रा-ओ-दीनार-ओ-दिरम चारों एक उठ गया क़ौम से अशराफ़ के हैहात अफ़्सोस इशरत-ओ-ऐश कहाँ जाह-ओ-हशम चारों एक रौशनाई-ओ-ज़बाँ तोहफ़ा करे क़िस्सा बयाँ जिस घड़ी होते हैं काग़ज़-ओ-क़लम चारों एक भूल जा शौक़ में वसलत के तू सब को ऐ दिल दोज़ख़-ओ-जन्नत ओ आराफ़ ओ अदम चारों एक वास्ते तेरे मुक़र्रर हैं दिल अंदेशा न कर मेहरबानी-ओ-अता फ़ज़्ल-ओ-करम चारों एक है शुजाअ'त व सख़ा हिल्म-ओ-हया 'क़ासिम-अली' शान में शेर-ए-ख़ुदा के हैं ख़तम चारों एक