मौज़ू-ए-सुख़न हिम्मत-ए-आली ही रहेगी जो तर्ज़ निकालूँगा मिसाली ही रहेगी अब मुझ से ये दुनिया मिरा सर माँग रही है कम्बख़्त मिरे आगे सवाली ही रहेगी वो नश्शा-ए-ग़म हो कि ख़ुमार-ए-मय-ए-पिंदार दिल वालों के चेहरे पे बहाली ही रहेगी अब तक तो किसी ग़ैर का एहसाँ नहीं मुझ पर क़ातिल भी कोई चाहने वाली ही रहेगी मैं लाख इसे ताज़ा रखूँ दिल के लहू से लेकिन तिरी तस्वीर ख़याली ही रहेगी इस दिल पे ठहरने का नहीं 'ज़ेब' कोई नक़्श ये आँख किसी रंग से ख़ाली ही रहेगी