मौज-ओ-गिर्दाब पे रखता है सफ़ीना मेरा उस को मंज़ूर न मरना है न जीना मेरा मेहर-ए-अफ़्कार की होती है नवाज़िश जब भी अर्ज़-ए-क़िर्तास पे गिरता है पसीना मेरा मुझ को आता है अज़ाबों का इज़ाला करना मोम है तो कभी फ़ौलाद है सीना मेरा ख़ादिम-ए-कूचा-ए-जाँ ये है सदाक़त मेरी चंद अन्फ़ास मुक़र्रर है महीना मेरा फ़ासले की नहीं क़ाएल है मोहब्बत मेरी साथियो है मिरे दिल में ही मदीना मेरा वो नहीं गर्दिश-ए-अय्याम के दर पे 'राहत' देखना है उसे मक़्सूद क़रीना मेरा