तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ओ-ख़याल तक था मिरा यक़ीं एहतिमाल तक था अजीब था दर्द-ए-ना-रसाई सदा-ब-सहरा सवाल तक था चराग़ आँखों में जल रहे थे सुकूत शाम-ए-मलाल तक था दयार-ए-शब का उदास मंज़र तुलू-ए-हुस्न-ए-ज़वाल तक था तबस्सुम-ए-दिल-नवाज़ भी ऐ 'नाज़' लब-ए-गुल-ए-पाएमाल तक था