मौजूद जो था मादूम समझ में आया इक उल्टा ही मफ़्हूम समझ में आया मैं जब पेड़ से गिर के ज़मीं की ख़ाक हुआ तब इक आलम-ए-मौहूम समझ में आया मैं ही मैं हूँ आँख उठती है जिधर भी अब ना-मालूम भी मालूम समझ में आया उल्टे मंतर ही शायद मैं पढ़ता हूँ जो ज़ाहिर था मादूम समझ में आया ज़ीस्त को मैं इक आब-ए-रवाँ कहता हूँ 'तूर' क्या तुम को ये मफ़्हूम समझ में आया