इश्क़ में दिल बन के दीवाना चला आश्ना से हो के बेगाना चला क़ुलक़ुल-ए-मीना से आती है सदा भर चुका जिस वक़्त पैमाना चला बे-ज़बानों को भी आई है ज़बाँ बेड़ी ग़ुल करती है दीवाना चला इश्क़-बाज़ी बाज़ ले शतरंज है चाल नादाँ रह गया दाना चला रश्क आता है कि ज़ुल्फ़-ए-यार में हत कंधे पर मेरे क्यों शाना चला शब जो आया बज़्म में वो शो'ला-रू शम्अ गुल करने को परवाना चला बू-ए-गुल ग़ुंचा से कहती है 'नसीम' बात निकली मुँह से अफ़्साना चला