मौसम-ए-बहार में दरख़्त पीले पड़ गए किसी को चूम चूम के गुलाब नीले पड़ गए ये क्या हुआ कि हम से कुछ मुज़ाहिमत न हो सकी हमारे हाथ-पाँव अपने आप ढीले पड़ गए मिज़ाज में भी आग थी अजीब दौड़-भाग थी तभी तो सारे जिस्म के मसाम गीले पड़ गए मसाफ़तों के दम-क़दम हवा हमारी हम-क़दम ज़मीं पे आसमान तक बुलंद टीले पड़ गए हमारे इख़्तियार में कहाँ था ख़ुद को रोकना हवा में ऐसा कैफ़ था शजर नशीले पड़ गए वो इक सुरीला शख़्स जब निकल गया था शहर से तो बे-सुरों के नाम भी यहाँ सुरीले पड़ गए तब उस ने मेरे बाँकपन को हौसला नया दिया जब उस के पीछे शहर के कई सजीले पड़ गए मुसालहत की कोशिशें अदावतों में ढल गईं हमारे उस के दरमियाँ कई क़बीले पड़ गए