मिरे वजूद से फ़ारिग़ किया गया मुझ को फिर ए'तिमाद में कैसे लिया गया मुझ को मैं उस फ़सील से बाहर निकल तो आता मगर मिरी ज़बान के अंदर सिया गया मुझ को फिर उस से कैसे जलाता मैं कोई और चराग़ दिया जला के हवा में दिया गया मुझ को तभी तो उस ने मुझे मारने की कोशिश की मैं मर गया तो मज़े से जिया गया मुझ को फिर एक दश्त नुमूदार हो गया मुझ में मैं एक दरिया था कैसे पिया गया मुझ को मैं अपने क़द से बड़ा होना चाहता था मगर मिरे वजूद से छोटा किया गया मुझ को कोई भी चाँद चिढ़ाया नहीं गया मुझ से अगरचे हाथ में सूरज दिया गया मुझ को