मौसम-ए-गुल में भी गुल नज़्र-ए-ख़िज़ाँ हैं सारे मुतमइन कोई नहीं महव-ए-फ़ुग़ाँ हैं सारे होश-मंदी से क़दम आगे बढ़ाओ लोगो अपनी जानिब ही खिंचे तीर-ओ-कमाँ हैं सारे चहचहाने की सदा आई थी कल तक जिन से जाने क्यों आज वो ख़ामोश मकाँ हैं सारे सिर्फ़ दीवार की ऊँचाई नज़र आती है ऐ मिरे शहर मिरे लोग कहाँ हैं सारे अब ख़ुदा ख़ैर करे क़ाफ़िला वालों की मिरे खोए खोए हुए मंज़िल के निशाँ हैं सारे कितना धुँदला दिया हालात ने तुम को 'शौकी' जिन को तुम अब्र समझते हो धुआँ हैं सारे